उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों को सितम्बर 2023 से राज्य सरकार से मिलने वाली पेंशन के लिए कोई बजट नहीं है कई आंदोलनकारियों को तो सालभर से अधिक हो गया उन्हें अभी तक पेंशन नहीं मिली।
जिस राज्य की प्राप्ति के लिए आंदोलनकार्यों ने लाठी -डंडे, गोली तक खाई, जेल में रहकर की यातनाओं का सामना किया, उनके प्रति सरकार कितनी उदासीन दिखाई दे रही है, इसकी बानगी तो स्पष्ट है कि आन्दोलनकारियों की मांगों को किसी भी सरकार ने गम्भीरता से नहीं लिया। क्षैतिज आरक्षण,एक समान पेंशन जैसे मांगों पर सरकार का ढुलमुल रवैया रहा । क्षैतिज आरक्षण पर एक प्रवर समिति बनाई गई । इस प्रदेश में जिस मुद्दों को लटकाना भटकाना है उस पर समिति और गंभीर मुद्दों पर जांच कमेटी बनाई जाती है जिसका आज तक कोई रिजल्ट नहीं मिला । कई बार यह भी देखने को मिला बीमार राज्य आंदोलनकारियों को अस्पताल में एक बैड तक नहीं मिलता । परिवहन निगम की बस में उनके साथ आये दिन बदसलूकी होती है फिर भी सरकार इनको गंभीरता से नहीं लेती। आन्दोलनकारियों को धामी सरकार से उम्मीद थी कि खुद मुख्यमंत्री धामी राज्य आंदोलनकारी रहे हैं भाजपा के अधिकांश विधायक खुद को आन्दोलनकारी होने का दम भरते हैं और कुछ आन्दोलन के दौरान रासूका की बात करते नहीं थकते । लेकिन जब राज्य आन्दोलनकारियों और राज्य हित में बड़े मुद्दों की बात हो वे खामोश हो जाते हैं।प्रदेश में मूलनिवास ,भूकानून, बेरोजगारी पर इन सबकी खामोशी हैरान करने वाली होती है ।कोई भी जनप्रतिनिधि इन गंभीर विषयों पर सदन में सवाल खड़े नहीं करते दिखाई दिए। इन सब बातों को लेकर राज्य आंदोलनकारियों में रोष है। और सरकार से एक समान पेंशन क्षैतिज आरक्षण और प्रत्येक माह समय पर पेंशन देने की मांग की।