30 मई 1930 का दिन उत्तराखंड के इतिहास में सबसे काला दिन था। जब अपने हक-हकूकों की लड़ाई के लिए शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन कर रहे रंवाई क्षेत्र के निहत्थे लोगों पर टिहरी रियासत के तत्कालीन अधिकारियों ने तिलाड़ी के मैदान पर सैकड़ों लोगों को गोलियों से भून दिया था। जिसमें 100 से अधिक लोगों की जान गई ,और कई घायल हुए। इस घटना को आज तक रंवाई क्षेत्र के लोग कभी नहीं भूलते यह जलियांवाला बाग हत्याकांड जैसा ही था।
अपने हक- हुकूकों की लड़ाई के किस्से उत्तराखंड के इतिहास में भरे पड़े हैं। कई बड़े आंदोलनों का आगाज यहां से हुआ है। रंवाई का तिलाड़ी कांड उत्तराखंड के इतिहास में ही नहीं अपितु भारत के इतिहास में भी एक काला अध्याय है। ब्रिटिश सरकार ने वनों के अनियमित दोहन को रोकने के लिए वनसंपदा दोहन के अधिकार अपने हाथ में ले लिए। इसी को आगे बढ़ाते हुए टिहरी रियासत ने 1885 में वन बंदोबस्त शुरू किया। वहीं रंवाई घाटी में 1927 में जब बन बंदोबस्त शुरू हुआ तो इससे ग्रामीणों के जंगलों के अधिकार खत्म कर दिए। और इस पर कर लगा दिया गया। पारंपरिक त्योहारों पर रोक लगा दी गई ,एक भैंस ,एक गाय, 1 जोड़ी बैल से अधिक पशु रखने पर1रुपये कर लगा दिया गया। पूरे भारत में उस समय ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन चरम पर था । तो इधर रंवाई घाटी के लोग राजशाही के इस तानाशाही फैसले के खिलाफ लोगों में रोष था। नये वन बंदोबस्त में वनो में पशु चराने पर शुल्क नदियों में मछली मारना भी बंद कर दिया, आलू की उपज पर प्रतिमाह ₹1 का कर लगा दिया गया इस प्रकार के कर से जनता में आक्रोश था, और आक्रोश धीरे-धीरे जन आंदोलन में बदल गया। राजा नरेंद्र शाह के राजदरबार में गवर्नर हेली के मनोरंजन के लिए गरीब लोगों को नंगा होकर तालाब में कूदने को कहा गया। इस तरह के कई राजशाही के जनविरोधी फैसले से जनमानस में राजशाही के खिलाफ विद्रोह की आग सुलगने लगी और अपने हक की लड़ाई के लिए निहत्थे लोगों ने रंवाई के तिलाड़ी मैदान में एक महापंचायत क्षेत्र के लोगों द्वारा बुलाई गई। महाराजा नरेंद्र शाह स्वास्थ्य लाभ के लिए यूरोप में थे राजा के ना होने के कारण सत्ता काउंसिल के हाथों में थी। वह मनमानी कर रहे थे इस काउंसिल के हेड चक्रधर जुयाल और हरकृष्ण रतूड़ी थे। जिन्होंने इस आंदोलन को कुचलने के लिए तिलाड़ी मैदान में राजशाही के खिलाफ आंदोलन कर रहे निहत्थे ग्रामीणों पर गोली चलवाई । जिसमें कई निहत्थे लोगों की मौत हुई, कई घायल हुए , कई लोगों ने तो अपनी जान बचाने के लिए यमुना नदी में छलांग लगा दी थी । राजशाही के इस क्रूरता और कायरतापूर्ण रवैये से पूरी टिहरी रियासत में राजशाही के खिलाफ आक्रोश बढ़ता गया और सामंतशाही के खिलाफ पूरी टिहरी रियासत में जगह जगह आंदोलन शुरू हुए जो सामंतशाही के पतन का कारण बना। यह घटना भले ही आज की युवा पीढ़ी को मालूम ना हो उत्तराखंड के इतिहास में यह नरसंहार रंवाई घाटी के लोगों के जहन में है। इस शहादत को शत शत नमन।