श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएं देने के मकसद से बनाया गया था, देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड

चार धाम यात्रा को लेकर पर्यटन एवं धर्मस्व मंत्री सतपाल महाराज के अनुसार चार धाम यात्रा पर अभी तक 48 लाख 79,698 श्रद्धालु पंजीकरण करवा चुके हैं। सबसे अधिक केदारनाथ में 15लाख 89,893, बद्रीनाथ में 14लाख 70,290, गंगोत्री के लिए 8लाख 58,275, यमुनोत्री के लिए 7लाख 93,246, के अलावा हेमकुंड साहिब के लिए 1लाख 67,994 श्रद्धालुओं ने पंजीकरण कराया। इसके लिए सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है। इसे अपनी बड़ी उपलब्धि भी बता रही है । यहां सवाल कई खड़े होते हैं, चार धाम यात्रा को लेकर सरकार के जो बड़े-बड़े दावे थे । श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होगी, पूरी सुविधाएं दी जाएंगी आदि।वह अपनी जगह हैं। जबकि यात्रियों को कितनी असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है । जगह-जगह घंटों सड़क जाम जूझ रहे हैं , ऊपर से तीर्थ पुरोहितों द्वारा यात्रियों के साथ बदसलूकी, गंदगी, बेलगाम घोड़ा -खच्चर ,पालकी, कंडी वालों कि यात्रियों के साथ बदसलूकी और मारपीट की घटना, सुरक्षा के नाम पर बहुत कम मात्रा में पुलिसकर्मी दिखाई दे रहे हैं। यमुनोत्री में मां यमुना के उद्गम स्थान पर गंदगी का अंबार, केदारनाथ में हर रोज नए- नए विवाद जो केदारनाथ की छवि है उसको कुछ लोग धूमिल करने का कुंठित प्रयास कर रहे हैं। चाहे केदारनाथ मंदिर के गर्भ गृह में स्वर्ण मंडित करने के विषय में अफवाह फैलाने, गर्भ ग्रह में शिवलिंग पर नोट बरसाने, खच्चरों के साथ अमानवीय व्यवहार कर उन्हें सिगरेट पिलाने, यात्रियों के साथ घोड़ा- खच्चर वालों की हाथापाई तो बद्रीनाथ में मंदिर परिसर में गंदगी का जो अंबार दिखाई दे रहा है आये दिन उसके वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं । मैं खुद चार धाम यात्रा की रिपोर्टिंग कर चुका हूं । इन सब को पर्यटन मंत्रालय नजरअंदाज कर रहा है।
उत्तराखंड में चार धाम यात्रा के लिए देश -विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं । पर अभी तक उनको जो व्यवस्था/ सुविधा दी जानी चाहिए थी, वह उन्हें नहीं मिल पाती । इन सब अव्यवस्थाओं को दूर करने के उद्देश्य से नवंबर 2019 में उत्तराखंड की तत्कालीन त्रिवेंद्र रावत सरकार के द्वारा विधानसभा में चारों धामों और अन्य महत्वपूर्ण मंदिरों के संचालन के लिए एक विधेयक विधानसभा में पास किया था। जिसका मकसद चार धाम यात्रा की व्यवस्था को दुरुस्त करने श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधा मिले इस उद्देश्य से इसका गठन किया गया था। साल 2020 में देवस्थानम बोर्ड अस्तित्व में आया था । यह एक एक्ट था। जिसके दायरे में चार धाम व इससे जुड़े 43 मंदिरों समेत कुल 51 प्रमुख मंदिरों को बोर्ड के अंदर रखा गया। इसके तहत मंदिरों के चढ़ावे पर पूरा हक- हुकूक इस बोर्ड के पास चला गया। सामाजिक कार्य, चार धाम विकास यात्रा, यात्रियों को दी जाने वाली हर सुविधा पर पूरा नियंत्रण देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के हाथ में आ गया। जिसके मुखिया स्वयं मुख्यमंत्री थे। 27 नवंबर 2019 को त्रिवेंद्र सरकार ने उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को मंजूरी दी। 5 दिसंबर 2019 में विधानसभा में विधेयक पास हो गया। और सरकार की तरफ से देवस्थानम बोर्ड को 4 जनवरी 2020 को राजभवन से मंजूरी मिल गई। 24 फरवरी 2020 को देवस्थानम बोर्ड के सीईओ की नियुक्ति कर राज्य सरकार ने सभी प्रमुख मंदिरों का पूरा कंट्रोल अपने हाथ में ले लिया। बोर्ड के अध्यक्ष मुख्यमंत्री और धर्मस्व व संस्कृति मंत्री इसके उपाध्यक्ष बनाए गए। गढ़वाल मंडल आयुक्त रविंद्र नाथ रमन को बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का पद सौंपा गया था । मुख्य सचिव समेत कई नौकरशाह इसके सदस्य बनाए गए । टिहरी रियासत के राज परिवार का एक सदस्य, हिंदू धर्म मानने वाले तीन सांसद और छह विधायक ने बतौर सदस्य नामित करने का प्रावधान किया गया था। इसके अतिरिक्त चार दानदाता ,हिंदू धर्म के धार्मिक मामलों को का अनुभव रखने वाले व्यक्तियों, पुजारी ,और वंशानुगत पुजारियों के 3 प्रतिनिधि को भी बोर्ड में जगह दी गई। अभी यहां दिक्कत मंदिरों के पुराने मालिक यानी समितियों को आई। जिनका इस बोर्ड के माध्यम से मंदिर में चढ़ावे का हक समाप्त हो गया उनका आरोप है कि यह सभी विकास कार्य जो सरकार करने की बात कर रही है वह तो समिति भी करती है । इसी पर बवाल हुआ साधु संत एक सुर में सरकार के विरोध में उतर गए और आंदोलन करने लग गए। जिस को राजनीतिक फायदे को लेकर धामी सरकार ने वापस ले लिया। और देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड राजनीति की भेंट चढ़ गया। जबकि यदि यह बोर्ड रहता तो यहां आने वाले देश- विदेश के श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएं मिल पाती। जो यह अव्यवस्था आज देखने को मिल रही है उस पर नियंत्रण होता। तीर्थ पुरोहितों द्वारा यात्रियों के साथ अभद्रता एवं उनका शोषण जो किया जा रहा है उस पर लगाम लगता। रावत सरकार का यह दूरदर्शी और साहसिक फैसला था। ताज्जुब की बात तो यह है कि जब देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड विधानसभा के पटल पर रखा गया था तो सभी मंत्रियों की उस पर स्वीकृति थी। रावत सरकार के हटते ही एकाएक मंत्रियों की खामोशी भी हैरान करने वाली है। आज जो चार धाम यात्रा में यात्रियों को असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। उससे एक बार फिर देवस्थानम प्रबंधन जैसा कोई बोर्ड बनना चाहिए । जिससे यात्रियों को असुविधा का सामना न करना पड़े।