जगतगुरु शंकराचार्य द्वारा निर्मित सिद्धपीठों में से एक मायादेवी खाल में मां महामाया देवी का मंदिर, शिव मंदिर,सत्यनारायण मंदिर और हनुमान मंदिर जहां एक ओर स्थानीय लोगों की आस्था का केंद है। वहीं दूसरी ओर इन मंदिरों की बनावट जो आदिबद्री की तर्ज पर बनाई गई थी। और शंकराचार्य जी द्वारा अनोखी शिल्पकला से नर्मित मूर्तियों के दर्शन मात्र से भक्तगण भाव -विभोर हो जाते हैं। साथ ही यहां के एकांत रमणीक स्थल को देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है।
टिहरी जिले के कीर्तिनगर प्रखंड के अंतर्गत हिसरियाखाल पट्टी में बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग लक्षमोली से मात्र 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मायादेवी खाल का उल्लेख स्कंद पुराण के केदारखण्ड संस्करण के के 180 अध्याय के 55 व 56 श्लोक में इन मंदिरों का उल्लेख किया गया है। स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि युधिष्ठिर ने इस स्थान पर मां माया देवी और माहेश्वर भगवान की उपासना की थी । पहले इन चारों मंदिरों में लगे बड़े-बड़े पत्थरों और पत्थरों की मूर्तियों को इस ढंग से तरासा गया है कि देखने वाले ही स्तब्ध रह जाते हैं । वर्षों पुराने इन मंदिरों में रखी गई मूर्तियों की बनावट आज के शिल्पकारों को भी मात दे सकती है। लेकिन एक दशक पूर्व किसी व्यक्ति ने इन पौराणिक मंदिरों के स्वरुप को ही बदल डाला है । हालांकि मूर्तियों से कोई छेड़छाड़ नहीं हुई। वह आज भी वहीं मौजूद हैं। इन पौराणिक मंदिरों से छेड़छाड़ कर उसे आधुनिकता के रंग में रंगने की क्या जरूरत थी । यह सवाल आज स्थानीय लोग पुछते हैं। वर्षों से इन मंदिरों को देखने पहले साधु सन्त पैदल ही इस स्थान पर पहुंचा करते थे। लेकिन अब इस स्थान पर गाड़ी से पहुंचा जा सकता है। स्थानीय लोग इस आस्था के केंद्र में रामलीला, कथा इत्यादि करते रहते हैं। इस क्षेत्र को विकसित करने के लिए कुछ सामाजिक और बद्धिजीवी वर्ग इस उपेक्षित स्थान की पहचान धार्मिक स्थल के रूप विकसित करने के लिए आगे आ रहे हैं। सरकार को भी अपने पौराणिक और धार्मिक स्थानों के रखरखाव पर ध्यान देना चाहिए।