उत्तराखंड राज्य बनने के बाद जिस तरह उत्तराखंड के नेता -अफसर खनन माफियाओं, शराब माफियाओं और भू माफियाओं के चुंगल में फंसते गये। सरकारी विभाग सोते रहे। प्रदेश की संपत्तियों पर समुदाय विशेष अवैध कब्जा कर निर्माण करते रहे। जी हां सरकार की नाक के नीचे जहां एक ओर वन विभाग की भूमि पर सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 1000 से अधिक अवैध मजारों का निर्माण होता रहा वहीं दूसरी ओर ईसाई मिशनरियां भी अवैध कब्जे को लेकर पीछे नहीं है ऐसा ही एक मामला घनसाली विधानसभा का है।
राज्य अभी युवावस्था में है। यहां के मूलनिवासी आज भी अपने अधिकार के लिए लड़ रहे हैं। ग्रामीण वन संपदा जिसकी वह स्वयं रक्षा करते थे उनसे उनके अधिकार दूर होते गये । जिस मातृशक्ति ने सड़क पर अलग राज्य की लड़ाई में अपना विशेष योगदान दिया उसको घास चारा के लिए जेल में डाला जा रहा है। कहने को घसियारी योजना सरकार के कागजों पर है धरातल पर उसका किसी को लाभ नहीं मिल रहा है। पहाड़ की भोली-भाली जनता इस योजना से अनभिज्ञ है। आज मूल उत्तराखंडी अपने हक हुकूकों के लिए आज भी लड़ रहा है। सरकार ना तो यहां की जमीनों को बचा पाई । ना ही यहां बेरोजगारों को रोजगार को दे पाई । जिसको मौका मिला उसने अपने करीबी और अपने परिवार रिस्तेदारों को नौकरी पर लगा दिया । जिस युवा ने राज्य निर्माण में अहम योगदान दिया वह आज भी रोजगार के लिए सड़कों पर लाठी-डंडे खाने को मजबूर है । वह रोजगार की बात करता है तो उस पर केस दर्ज हो जाता है । वहीं मातृशक्ति की बात करें तो वह भी जगह -जगह अपमानित हो रही है । वह आज चारा -पत्ति के लिए यदि जंगल जाती है तो उस पर वन विभाग की ओर से केस दर्ज हो जाता है।
इन सबके बावजूद गृह मंत्रालय की रिपोर्ट चिंता की लकीरें और बढ़ा रही हैं । गृह मंत्रालय के अनुसार उत्तराखंड देश में असम के बाद दूसरा ऐसा राज्य है जहां बाहरी मुसलमानों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है । यह बढ़ोतरी कोई मामूली नहीं, बल्कि छह लाख से अधिक मुस्लिम जनसंख्या राज्य बनने के बाद बढ़ी हैं, जो चिंता का विषय है। राज्य में सामाजिक संगठन लगातार वन विभाग की भूमि पर अवैध मजारों को लेकर चिंतित दिखाई दिये उनके खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं । सरकार पर इसका कोई असर नहीं दिखाई दिया । इस छोटे राज्य में मुख्यमंत्री अपनी कुर्सी, मंत्री मुख्यमंत्री बनने के लिए, विधायक मंत्री बनने के लिए पूरे 5 साल इस उधेड़बुन में लगे रहते हैं सरकार को ना तो प्रदेश की चिंता ,ना ही यहां के संसाधनों की चिंता है। मैंने जब रोहिंग्या मुसलमानों पर एक लेख लिखा था । उसमें खुलासा किया था कि कैसे सत्तारूढ़ पार्टी के मंडल अध्यक्ष से लेकर विधायक तक उनको संरक्षण दे रहे हैं । उनके आधार कार्ड, पहचान पत्र बना रहे हैं तो उसका खामियाजा भी मुझे भुगतना पड़ा। ऐसे ही एक और मामला आज घनसाली विधानसभा का है । जहां ईसाई मिशनरियां धर्म परिवर्तन के साथ ही सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा कर रही हैं। उसको बचाने के लिए स्थानीय लोग संघर्ष कर रहे हैं। धामी सरकार ने धर्मांतरण को लेकर एक कठोर कानून तो बनाया है। उसका असर कितना होगा वह भविष्य के गर्भ में है । मसूरी के पब्लिक स्कूलों में कार्यरत कर्मचारीयों का जबरन धर्मांतरण, घनसाली क्षेत्र ,नई टिहरी नागनाथ पोखरी ,पौड़ी ,श्रीनगर, और देहरादून, यह केवल गढ़वाल क्षेत्र की बात हो रही है। जहां बड़ी जोरों पर ईसाई मिशनरी धर्मांतरण को बढ़ावा दे रहे हैं । साथ ही सरकार की भूमि पर अवैध कब्जा भी कर रहे हैं। ताजा मामला टिहरी जनपद के घनसाली क्षेत्र का है जहां ईसाई मिशनरी द्वारा धर्मांतरण के साथ उत्तराखंड शासन कि सिविल वेनाप बंजर भूमि पर अवैध कब्जा कर रहे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार घनसाली पशु अस्पताल के निकट एक स्थानीय व्यक्ति ने कैथोलिक डायसेसिस बिजनौर उत्तर प्रदेश की मिशनरी संस्था को दान स्वरूप एक जमीन दी दी थी । मिशनरी पादरी ने उससे सटी सरकारी वेनाप भूमि लगभग 4 नाली के करीब भूमि पर धीरे-धीरे कब्जा करना शुरू कर दिया । जिस पर स्थानीय लोग क्रीड़ा मैदान बनाना चाहते हैं जब स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया तो मिशनरी के पादरी ने उन्हें धमकाते हुए स्थानीय लोगों के खिलाफ केस दर्ज करने की धमकी दे डाली। स्थानीय लोगों ने शासन प्रशासन यहां तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय तक को भी इस संदर्भ में पत्र भेजा है । स्थानीय लोगों का मानना है कि क्षेत्रीय विधायक के दबाव में शासन-प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है । और स्थानीय लोगों के खिलाफ ही कानूनी कार्रवाई करने की धमकी दे रहा है।क्षेत्रीय विधायक पर लगातार ईसाई मिशनरियों का साथ देने का आरोप लग रहा है जो चिंता का विषय है । देवभूमि में जहां एक ओर माओवादी विचारधारा के लोग सक्रिय दिखाई दे रहे हैं ,वहीं दूसरी ओर बाहरी मुस्लिम और ईसाई मिशनरी जिस तरह से अपने पैर फैला रहे हैं । वह देवभूमि के लिए चिंता का विषय है। सीमांत राज्य होने के नाते यदि इन पर समय रहते हुए कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई तो आने वाले समय में यहां भी अमरनाथ की तर्ज पर चार धाम यात्रा तीर्थ यात्रियों को बंदूक की नोक पर भारतीय सेना का सहारा लेने को विवश होना पड़ेगा। सरकार को इस ओर ध्यान देना होगा।