ईवीएम का विवादित मसला

अगर ईवीएम अविश्वसनीय हैं, तो फिर कांग्रेस या संपूर्ण विपक्ष को इस मुद्दे को एक संगठित ढंग से उठाना चाहिए। साथ ही इन दलों को यह कहना चाहिए कि वे चुनाव में भाग तभी लेंगे, जब इन्हें विश्वसनीय विधि से कराया जाएगा। मध्य प्रदेश में कांग्रेस को दो बड़े नेताओं- दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ने जो कहा है, उसका संकेत है कि वे राज्य में अपनी पार्टी की हुई हार को स्वीकार करने से इनकार कर रहे हैं। दिग्विजय सिंह ने साफ कहा है कि उन्हें ईवीएम पर भरोसा नहीं है।

इसके पहले जब एक एग्जिट पोल में भाजपा को 160 से अधिक सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था, तब सिंह ने ट्विट कर उस सर्वे एजेंसी के कर्ताधर्ता की साख पर सवाल उठाया था। कमलनाथ ने संदेह जताया है कि उस सर्वे एजेंसी को पहले से नतीजा पता था, और उसने ऐसे परिणाम के बारे में पहले से माहौल बनाने की कोशिश की। स्पष्टत: ये गंभीर आरोप हैं। इनकी गंभीरता इसलिए अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि इनका सीधा संबंध भारतीय लोकतंत्र की साख से है। लोकतंत्र का यह अनिवार्य तत्व है कि उसमें होने वाले चुनावों में सभी सहभागी पक्षों का यकीन बना रहे। तभी राजनीतिक दल अपनी हार को सहजता से स्वीकार करते हैं।

अपेक्षा यह होती है कि पार्टियां अपनी हार को इस रूप में स्वीकार करें कि इस बार वे मतदाताओं का पर्याप्त समर्थन नहीं जुटा पाए। लेकिन अगर दल यह मानें कि मतदाताओं का बहुमत उनके साथ था, लेकिन किसी प्रकार की धांधली से जीत उनसे छीन ली गई, तो फिर चुनाव और लोकतंत्र दोनों की साख खतरे में पड़ जाती है। इसीलिए दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बयानों को हलके से नहीं लिया जा सकता। इन बयानों से कई प्रश्न उठे हैँ। मसलन, यह कि जब कांग्रेस जीत जाती है, वहां उसके नेता ऐसे सवाल क्यों नहीं उठाते? फिर ऐसे प्रश्न चुनाव नतीजे आने के बाद क्यों उठाए जाते हैं? अगर ईवीएम अविश्वसनीय हैं, तो फिर कांग्रेस या संपूर्ण विपक्ष को इस मुद्दे को एक संगठित ढंग से उठाना चाहिए। साथ ही उसे यह बताना चाहिए कि किस विधि से होने वाले चुनाव को वह विश्वसनीय मानेगा। उसे यह कहना चाहिए कि जब तक उसकी शर्तें पूरी नहीं होतीं, वह चुनावों में भाग नहीं लेगा। वरना, चुनावों के बाद ऐसे आरोप अंगूर खट्टे हैं, वाली कहावत की श्रेणी में माने जाएंगे।