15 जुलाई सोमवार के दिन भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक संपन्न हुई। बैठक में जहां एक ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तीसरे कार्यकाल और धामी सरकार के 3 वर्ष पूरे होने पर बधाई प्रस्ताव दिया जा रहा था। वहीं दूसरी ओर दो पूर्व मुख्यमंत्रियों ने सरकार और संगठन के फैसलों पर सवाल खड़े करते हुए नसीहत भी दे डाली।
ग्राफिक एरा के नवनिर्मित सभागार में हरियाणा के पूर्व सीएम और केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर, प्रदेश प्रभारी दुष्यंत गौतम, मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी, प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट, संगठन महामंत्री अजय कुमार, सभी मंत्री/विधायक निवर्तमान महापौर/पालिका अध्यक्ष एवं अपेक्षित कार्यकर्ताओं की मौजूदगी में संपन्न हुई प्रदेश कार्य समिति की बैठक में पूर्व मुखमंत्री विजय बहुगुणा ने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाते हुए कहा कि उपचुनाव की पराजय को भूलकर पार्टी के कार्यकर्ताओं को केदारनाथ उपचुनाव पर ध्यान देना चाहिए उन्होंने कहा कि हिमालय में छोटी-मोटी घटनाएं घटती रहती हैं उसे घबराने की जरूरत नहीं हमें आगे बढ़ना होगा । जबकि अक्सर शांत दिखने वाले और पार्टी के एक अनुशासित कार्यकर्ता के रुप में पार्टी के हर फैसले को स्वीकार करने वाले पूर्व सीएम और गढ़वाल के पूर्व सांसद तीरथ सिंह रावत ने अपने संबोधन में नये सवाल को जन्म दे दिया है जिससे सरकार और संगठन असहज नजर आये । तीरथ ने वैचारिक और निष्ठावान कार्यकर्ताओं की पीड़ा और उनके सम्मान की बात कही। पूर्व सीएम रावत ने उपचुनाव की हार के बहाने पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को इशारों -इशारों में खूब खरी खोटी सुनाई। उन्होंने कहा कि इस उपचुनाव में उन्होंने पार्टी के प्रत्याशियों के चयन पर संकेत दे दिए थे। कि थोपना बंद करो , जनता आगे बढ़ गई, नेता पीछे हो गया, नेताओं को जमीन नहीं छोड़ना चाहिए वे आज मंच पर हैं उनकी जगह कल पीछे बैठे कार्यकर्ताओं की जगह होगी और तब उन्हें पीछे बैठना पड़ेगा । तीरथ ने कर्यकर्ताओं की पीड़ा को बयां किया उनके भाषण में निष्ठावान और और वैचारिक कार्यकर्ताओं का दर्द के साथ ही पार्टी के उन नेताओं को दिन में तारे दिखाये जो वस्तव में जमीन छोड़ गए हैं कार्यकर्ताओं को कोई सम्मान नहीं दे रहा है। लोकसभा चुनाव में देखा गया कि भाजपा के कार्यकर्ताओं में वह जोश नहीं दिखाई दिया जो अक्सर दिखाई देता था ।उपचुनाव में पराजय का जश्न कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ-साथ भाजपा के कार्यकर्ता भी मना रहे थे । भले ही वह खुलकर नहीं आए लेकिन अंदर ही अंदर खुश दिखाई दे रहे थे टिकट को लेकर ही कार्यकर्ताओं में निराशा दिखाई दे रही थी।
संगठन में कार्यकर्ताओं की कोई सुनवाई नहीं
भाजपा संगठन पर जिस तरह तीरथ सिंह रावत ने सवाल खड़े किए वह गंभीर हैं संगठन के मुखिया महेंद्र भट्ट भले ही संगठन से निकले अनुभवी नेता हों पर कार्यकर्ताओं की नजर में उन पर अब तक का सबसे कमजोर अध्यक्ष होने का तमगा लगा रहे हैं। कार्यकर्ता दबी जुबान से उनकी संघटनात्मक क्षमता पर सवाल उठाते हैं। सरकार और संगठन में कोई सामंजस्य नहीं दिखाई देता । महेंद्र भट्ट पूरी तरह से विधायकों के आगे नतमस्तक नजर आते हैं । चह कर भी वह कोई फैसला नहीं ले सकते । संगठन पूरी तरह से मंत्री/विधायकों की गिरफ्त में है। भट्ट कई मामलों में तारीख पर तारीख देते नजर आते हैं जिससे मीडिया भी उनकी बात को कोई तब्बजो नहीं देता ।रही संगठन मंत्री की बात तो वह कुर्सी तोड़ मात्र हैं । उनके पास ना संगठन को आगे बढ़ाने की सोच है , कोई कार्यकर्ता यदि किसी गंभीर विषय को लेकर उनके पास जाता है तो उसके वह सुनने की बजाए उसको मंडल और जिला अध्यक्ष के पास जाने को कह देते हैं। पार्टी स्तर पर कई ऐसे फैसले लिए जा रहे हैं जो पार्टी की विचारधारा के लिए आगे जाकर मुसीबत बन सकते हैं। प्रदेश प्रभारी को भी कुछ चाटुकार नेता इस तरह से घेर लेते हैं कि उनके पास आम कार्यकर्ता नहीं पहुंच सकता।
कई विधानसभाओं में विधायकों ने विचारधारा और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं या तो घर बैठा दिया है या उन्हें षड्यंत्र के तहत पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। चाटुकार और चमचागिरी करने वाले नये कार्यकर्ताओं को विधायक तब्बजो दे रहे हैं ,टिहरी , धनोल्टी, नरेंद्र नगर, घनसाली , धर्मपुर, मसूरी, आदि विधानसभाओं में विधायकों के भरोसे संगठन चल रहा है । पार्टी में अब कार्यकर्ताओं का कोई मूल्यांकन करने वाला नहीं है जो दो महीने पहले अन्य दलों से आये हैं उन्हें सीधे प्रदेश में पदाधिकारी कौन बना रहा है इन सब बातों को लेकर आज वैचारिक और पुराने निष्ठावान कार्यकर्ताओं के मन में सवाल के साथ गुस्सा भी दिखाई दे रहा है। पर उनकी पीड़ा को सुनने वाला कोई नहीं है। पूर्व सीम तीरथ सिंह रावत ने काफी गंभीर सवाल उठाते हुए पार्टी संगठन और सरकार को नसीहत भी दे डाली जिसकी चर्चा आज सोशल मीडिया से लेकर आम कार्यकर्ताओं में है। निकाय चुनाव केदारनाथ का उपचुनाव पंचायत चुनाव और 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव की दृष्टि से रावत द्वारा गए सवाल पर क्या सरकार और संगठन को गंभीरता से लेना होगा ।