नये क्लेवर में नजर आई उक्रांद, सड़क पर दिखाया दम।

 

 

कल यानी कि 8 अप्रैल को अलग राज्य की लड़ाई में अग्रणीय भूमिका निभाने वाली एकमात्र क्षेत्रीय दल ने विभिन्न मांगों को लेकर सड़क पर सरकार के खिलाफ हमला बोला और मुख्यमंत्री आवास को कूच करने की कोशिश की । हांलांकि उससे पहले ही हाथीबड़कला में पुलिस ने बैरिकेडिंग लगाकर दल के करीब तीन दर्जन से अधिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया। बाद में उन्हें रिहा भी कर दिया।
अपने पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार उत्तराखंड क्रांति दल के कार्यकर्ता परेड ग्राउंड में बड़ी संख्या में एकत्रित हुए । झूठे मुकदमों में  फंसाये अपने युवा नेता आशुतोष नेगी और आशीष नेगी की रिहाई, अंकिता भंडारी मर्डर केस में वीआईपी के नाम के खुलासा और बेटी को न्याय दिलाने में देरी, भ्रष्टाचार, प्रदेश की बिगड़ती कानून व्यवस्था, मूलनिवास , भूकानून जैसे मुद्दों को लेकर सरकार पर जमकर हमला बोला। उक्रांद की इस रैली को आज मूलनिवास भूकानून संघर्ष समिति,गौरव सेनानी ऐसोसिएशन ने भी इस आक्रोश रैली का समर्थन किया। पुलिस के साथ धक्का मुक्की, सरकार के खिलाफ नारेबाजी सब देखने को मिला। इस दौरान एक महिला कार्यकर्ता बेहोश भी हुई। पुलिस ने हालांकि संयम रखा ।
अच्छा लगा बहुत समय बाद उक्रांद को सड़क पर उतरते हुए उसमें एकजुटता दिखी । इससे पहले अंकिता भंडारी हत्या मामले में उक्रांद के कुछ नेता सड़क पर उतरे प्रमिला रावत, आशुतोष नेगी जैसे युवाओं ने उस समय सरकार की कार्रवाई पर सवाल उठाए। हालांकि उस समय उसके बड़े नेता नदारद थे।उक्रांद जो अलग राज्य की लड़ाई में अग्रणीय भूमिका में थी । खुद उसके नेताओं ने अपने हित और अहम की लड़ाई में उसे भारी नुकसान पहुंचाया । जिससे पार्टी कई बार टूटी- बिखरी। उसके द्वारा उठाए जाने वाले मुद्दे गौण होते चले गए। उसके बड़े नेता संघर्ष की जगह सरकार की गोद में बैठकर अपने व्यक्तिगत हित साधने लगे । और पार्टी जनता के बीच में अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाई। लगातार पार्टी अपने अंदरुनी झगड़ों के कारण सुर्खियों में रही । जिस वजह से प्रदेश के मतदाता चुनाव में क्षेत्रीय दल की बजाय राष्ट्रीय दलों को ही सत्ता की बागडोर देती रही। राष्ट्रीय दल दिल्ली दरबार को खुश करने और अपनी कुर्सी बचाने में दिखाई दिए। बार -बार मुख्यमंत्री बदलना और क्षेत्रीय मुद्दों पर खामोशी , भ्रष्टाचार पर अंकुश न लगना । भू माफिया,खनन और खनन माफिया सरकार पर हावी होते गए इन पच्चीस सालों में। जनता के मुद्दे भू कानून, मूलनिवास 1950 , राजधानी का मुद्दा , बेरोजगारी पलायन जैसे मुद्दों की अनदेखी की गई। जनता के पास एक मजबूत विकल्प न होने की वजह से राष्ट्रीय दलों को फायदा मिलता रहा। कुछ समय से प्रदेश में जो माहौल है उससे प्रदेश की जनता और युवाओं में एक आक्रोश देखने को मिल रहा है। जनता पर भी इसका प्रभाव देखने को मिल रहा है । बॉबी पंवार, मोहित डिमरी त्रिभुवन चौहान आदि युवाओं ने जैसे मुद्दों पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया। और‌ जनता का भी समर्थन मिलता उन्हें दिखाई दे रहा है। उक्रांद की बात कर तो उसमें पुष्पेश त्रिपाठी, मेजर संतोष भंडारी,प्रमिला रावत, शांति प्रसाद भट्ट,आशुतोष नेगी , आशीष नेगी , उर्मिला महर, किरन रावत कश्यप, मीनाक्षी घिल्डियाल आदि अच्छे पढ़े-लिखे युवाओं का पार्टी से जुड़ना और संघर्षों को देख कर लग रहा है कि प्रदेश में 2027के चुनाव में प्रदेश को एक विकल्प मिल सकता है। जिसका नुकसान भाजपा और कांग्रेस को होना स्वाभाविक है। हालांकि यह कहना अभी जल्दबाजी होगा लेकिन युवाओं का तेवर देख के यही लग रहा है कि 2027 का चुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों की चिंताएं बढ़ सकती हैं यदि तीसरा विकल्प की सुगबुगाहट तेज होती दिखाई दे रही है। कल की आक्रोश रैली में स्वाभिमान मोर्चा के कयी बड़े नेता मौजूद थे।

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