सरकार ने हाई कोर्ट को बताया- अब नहीं लाएंगे अंधविश्वास विरोधी विधेयक
हाई कोर्ट का सवाल– बिना कानून के कुप्रथाओं पर कैसे लगेगी रोक?
केरल। केरल सरकार ने हाई कोर्ट को सूचित किया है कि वह राज्य में काला जादू, तंत्र-मंत्र और अमानवीय प्रथाओं पर रोक लगाने वाला कानून अब नहीं लाएगी। सरकार ने इसे नीति से जुड़ा निर्णय बताया है, जो मंत्रिमंडल स्तर पर लिया गया। इस फैसले के बाद अदालत ने राज्य सरकार से सवाल किया है कि ऐसी कुप्रथाओं को रोकने के लिए अब कौन से वैकल्पिक कदम उठाए जाएंगे।
केरल की वामपंथी सरकार ने केरल हाई कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि वह काला जादू, अंधविश्वास और तांत्रिक गतिविधियों पर रोक लगाने वाला कोई नया कानून लाने के पक्ष में नहीं है। सरकार ने बताया कि पहले ‘केरल अमानवीय कुप्रथाओं, जादू-टोना और काला जादू निवारण एवं उन्मूलन विधेयक, 2022’ का मसौदा तैयार किया गया था, जो राज्य विधि सुधार आयोग की सिफारिशों पर आधारित था। लेकिन 5 जुलाई 2023 को कैबिनेट की बैठक में यह तय किया गया कि इस प्रस्तावित कानून को आगे नहीं बढ़ाया जाएगा।
सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि अदालत किसी भी विषय पर कानून बनाने का आदेश नहीं दे सकती, क्योंकि यह विधायिका का विशेषाधिकार है।
हाई कोर्ट की प्रतिक्रिया:
मुख्य न्यायाधीश नितिन जामदार की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य सरकार से पूछा कि यदि कानून नहीं बनाया जा रहा है, तो फिर तांत्रिक गतिविधियों और अंधविश्वासों को रोकने के लिए क्या वैकल्पिक उपाय किए जा रहे हैं। कोर्ट ने यह भी याद दिलाया कि पूर्व न्यायमूर्ति के टी थॉमस आयोग ने इस विषय पर ठोस कानून बनाने की सिफारिश की थी, जिस पर अब तक अमल नहीं हुआ है। अब कोर्ट ने सरकार से तीन हफ्तों में विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा है।
याचिका का मूल मामला:
यह मामला ‘केरल युक्तिवादी संघम’ द्वारा दायर जनहित याचिका के माध्यम से सामने आया है। याचिका में महाराष्ट्र और कर्नाटक की तरह केरल में भी काला जादू विरोधी कानून बनाने की मांग की गई है। याचिका में 2022 में पथानामथिट्टा जिले में दो महिलाओं की तांत्रिक बलि की घटना का हवाला देते हुए सरकार की निष्क्रियता पर सवाल उठाया गया है।
मीडिया कंटेंट पर भी सवाल:
याचिका में यह भी मांग की गई है कि फिल्मों, ओटीटी, टीवी सीरियलों और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स पर तंत्र-मंत्र और अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों पर रोक लगाई जाए। हालांकि, रचनात्मक और जागरूकता फैलाने वाले कंटेंट को इससे बाहर रखा जाए।