भारत में आम लोगों को महंगाई से कोई राहत नहीं मिलने जा रही है। और अब आई ताजा खबर ने इस मोर्चे पर चिंता और बढ़ा दी है। खबर यह है कि रूस ने भारत को रियायती दर पर उवर्रकों की बिक्री रोक दी है। अगर मुद्रास्फीति दर में बहुत मामूली गिरावट भी आ जाए, तो अखबारी सुर्खियां उसे इस रूप में पेश करती हैं, जैसे अब महंगाई में वास्तविक गिरावट आने लगी है। जबकि उसका असल मतलब यह होता है कि गुजरे महीने या तिमाही में महंगाई बढऩे की दर कुछ धीमी रही। मसलन, अगस्त के आंकड़ों में बताया गया है कि इस महीने मुद्रास्फीति की दर 6.83 प्रतिशत रही, जबकि जुलाई में यह दर 7.44 फीसदी थी। इसका अर्थ यह हुआ कि महंगाई जुलाई की तुलना में 0.61 प्रतिशत कम दर से बढ़ी। क्या इसे महंगाई पर काबू पा लेना कहेंगे? अब जुलाई की खाद्य मुद्रास्फीति का आंकड़ा भी आया है, जिसके मुताबिक उस महीने खाद्य पदार्थों की कीमत लगभग दस प्रतिशत की दर से बढ़ी।
जाहिर है, लोगों को महंगाई से कोई राहत नहीं मिल रही है। और अब आई ताजा खबर ने इस मोर्चे पर चिंता और बढ़ा दी है। खबर यह है कि रूस ने भारत को रियायती दर पर उवर्रकों की बिक्री रोक दी है। 2022 में रूसी कंपनियां भारत की सबसे बड़ी खाद सप्लायर बन गई थी। तब प्रतिबंधों के कारण रूसी खाद कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद बेचने में परेशानी हो रही थी। इससे बचने के लिए उन्होंने भारत को सस्ते दाम पर डी-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) बेचना शुरू किया। एक विदेशी समाचार एजेंसी की खबर के मुताबिक अब यह सस्ती सप्लाई बंद हो कर दी गई है। एजेंसी ने भारत सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी से इस सूचना की पुष्टि भी की है। डीएपी भारत में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली रासायनिक खाद है। वित्त वर्ष 2022-23 में भारत ने रूस से 43.5 लाख टन रासायनिक खाद खरीदी।
इनमें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी डीएपी, यूरिया और एनपीके खाद की थी। सस्ती सप्लाई रुकने का सीधा असर खेती की लागत बढऩे के रूप में सामने आएगा। उसका असर अनाज और अन्य खाद्य पदार्थों की महंगाई और बढऩे के रूप में सामने आएगा। साफ है, महंगाई से अभी आम लोगों को राहत मिलने की उम्मीद नहीं है- अखबारी सुर्खियां चाहे आंकड़ों को जिस हद तक चासनी में लपेटें।