प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम को किया संबोधित

चार हजार साल पुरानी कलाकृतियों को अमेरिका ने किया वापस – प्रधानमंत्री मोदी 

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ कार्यक्रम को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के 10 साल पूरे होने पर भी बात की। उन्होंने कहा कि मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। ‘मन की बात’ में एक बार फिर हमें जुड़ने का अवसर मिला है। आज का ये एपिसोड मुझे भावुक करने वाला है, मुझे बहुत सी पुरानी यादों से घेर रहा है। कारण ये है कि ‘मन की बात’ की हमारी इस यात्रा को 10 साल पूरे हो रहे हैं। 10 साल पहले ‘मन की बात’ का प्रारंभ 3 अक्तूबर को विजयादशमी के दिन हुआ था और ये कितना पवित्र संयोग है, कि इस साल 3 अक्तूबर को जब ‘मन की बात’ के 10 वर्ष पूरे होंगे, तब नवरात्रि का पहला दिन होगा।

पीएम मोदी ने कहा कि ‘मन की बात’ ने साबित किया है कि देश के लोगों में सकारात्मक जानकारी की कितनी भूख है। सकारात्मक बातें, प्रेरणा से भर देने वाले उदाहरण, हौसला देने वाली गाथाएं, लोगों को बहुत पसंद आती हैं। जैसे एक पक्षी होता है ‘चकोर’, जिसके बारे में कहा जाता है कि वो सिर्फ वर्षा की बूंद ही पीता है। ‘मन की बात’ में हमने देखा कि लोग भी चकोर पक्षी की तरह देश की उपलब्धियों को, लोगों की सामूहिक उपलब्धियों को, कितने गर्व से सुनते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे देश में कितने प्रतिभावान लोग हैं, उनमें देश और समाज की सेवा करने का कितना जज्बा है। वो लोगों की निस्वार्थ भाव से सेवा करने में अपना पूरा जीवन समर्पित कर देते हैं। उनके बारे में जानकार मैं ऊर्जा से भर जाता हूं। ‘मन की बात’ की ये पूरी प्रक्रिया मेरे लिए ऐसी है, जैसे मंदिर जा करके ईश्वर के दर्शन करना। ‘मन की बात’ के हर बात को, हर घटना को, हर चिट्ठी को मैं याद करता हूं तो ऐसे लगता है मैं जनता जनार्दन जो मेरे लिए ईश्वर का रूप है, मैं उनका दर्शन कर रहा हूं।

पीएम मोदी ने कहा कि 2 अक्तूबर को ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के 10 साल पूरे हो रहे हैं। यह अवसर उन लोगों के अभिनंदन का है, जिन्होंने इसे भारतीय इतिहास का इतना बड़ा जन-आंदोलन बना दिया। ये महात्मा गांधी को भी सच्ची श्रद्धांजलि है, जो जीवनपर्यंत, इस उद्देश्य के लिए समर्पित रहे। मुझे केरला में कोझिकोड में एक शानदार प्रयास के बारे में पता चला। यहां 74 साल के सुब्रह्मण्यन 23 हजार से अधिक कुर्सियों की मरम्मत करके उन्हें दोबारा काम लायक बना चुके हैं। लोग तो उन्हें ‘Reduce, Reuse, और Recycle, यानि RRR Champion भी कहते हैं। उन्होंने कहा कि स्वच्छता को लेकर जारी अभियान से हमें ज्यादा-से- ज्यादा लोगों को जोड़ना है, और यह एक अभियान, किसी एक दिन का, एक साल का, नहीं होता है, यह युगों-युगों तक निरंतर करने वाला काम है। यह जब तक हमारा स्वभाव बन जाए ‘स्वच्छता’, तब तक करने का काम है।

प्रधानमंत्री ने अपनी हालिया अमेरिका यात्रा का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अमेरिका की मेरी यात्रा के दौरान अमेरिकी सरकार ने भारत को करीब 300 प्राचीन कलाकृतियों को वापस लौटाया है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने पूरा अपनापन दिखाते हुए अपने निजी आवास में इनमें से कुछ कलाकृतियों को मुझे दिखाया। लौटाई गईं कलाकृतियां टेराकोटा, पत्थर, हाथी के दांत, लकड़ी, तांबा और कांसे जैसी चीजों से बनी हुई हैं। इनमें से कई तो चार हजार साल पुरानी हैं।

उन्होंने कहा कि चार हजार साल पुरानी कलाकृतियों से लेकर 19वीं सदी तक की कलाकृतियों को अमेरिका ने वापस किया है।इनमें फूलदान, देवी-देवताओं की टेराकोटा पट्टिकाएं, जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाओं के अलावा भगवान बुद्ध और भगवान श्री कृष्ण की मूर्तियां भी शामिल हैं। लौटाई गईं चीजों में पशुओं की कई आकृतियां भी हैं। पुरुष और महिलाओं की आकृतियों वाली जम्मू-कश्मीर की टेराकोटा टाइल्स तो बेहद ही दिलचस्प हैं। इनमें कांसे से बनी भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमाएं भी हैं, जो दक्षिण भारत की हैं। वापस की गई चीजों में बड़ी संख्या में भगवान विष्णु की तस्वीरें भी हैं। ये मुख्य रूप से उत्तर और दक्षिण भारत से जुड़ी हैं। इनमें से बहुत सी कलाकृतियों को तस्करी और दूसरे अवैध तरीकों से देश के बाहर ले जाया गया था। यह गंभीर अपराध है, एक तरह से यह अपनी विरासत को खत्म करने जैसा है, लेकिन मुझे इस बात की बहुत खुशी है, कि पिछले एक दशक में ऐसी कई कलाकृतियां और हमारी बहुत सारी प्राचीन धरोहरों की घर वापसी हुई है।

पीएम मोदी ने कहा कि एक भाषा है हमारी ‘संथाली’ भाषा । ‘संथाली’ को डिजिटल नवाचार की मदद से नई पहचान देने का अभियान शुरू किया गया है। ‘संथाली’, हमारे देश के कई राज्यों में रह रहे संथाल जनजातीय समुदाय के लोग बोलते हैं। भारत के अलावा बांग्लादेश, नेपाल और भूटान में भी संथाली बोलने वाले आदिवासी समुदाय मौजूद हैं। संथाली भाषा की ऑनलाइन पहचान तैयार करने के लिए ओडिशा के मयूरभंज में रहने वाले रामजीत टुडु एक अभियान चला रहे हैं। रामजीत जी ने एक ऐसा डिजिटल प्लेटफॉर्म तैयार किया है, जहां संथाली भाषा से जुड़े साहित्य को पढ़ा जा सकता है और संथाली भाषा में लिखा जा सकता है। रामजीत ने मोबाईल फोन का इस्तेमाल शुरू किया तो वो इस बात से दुखी हुए कि वो अपनी मातृभाषा में संदेश नहीं दे सकते! इसके बाद वो ‘संथाली भाषा’ की लिपि ‘ओल चिकी’ को टाईप करने की संभावनाएं तलाश करने लगे। अपने कुछ साथियों की मदद से उन्होंने ‘ओल चिकी’ में टाइप करने की तकनीक विकसित कर ली। आज उनके प्रयासों से ‘संथाली’ भाषा में लिखे लेख लाखों लोगों तक पहुंच रहें हैं।

उन्होंने कहा कि  जब हमारे दृढ़ संकल्प के साथ सामूहिक भागीदारी का संगम होता है तो पूरे समाज के लिए अदभुत नतीजे सामने आते हैं। इसका सबसे ताज़ा उदाहरण है ‘एक पेड़ मां के नाम’। ये अभियान अदभुत अभियान रहा, जन-भागीदारी का ऐसा उदाहरण वाकई बहुत प्रेरित करने वाला है। पर्यावरण संरक्षण को लेकर शुरू किए गए इस अभियान में देश के कोने-कोने में लोगों ने कमाल कर दिखाया है।

पीएम मोदी ने कहा कि हमारे देश में पेड़ लगाने के अभियान से जुड़े कितने ही उदाहरण सामने आते रहते हैं। ऐसा ही एक उदाहरण है तेलंगाना के के.एन. राजशेखर जी का। पेड़ लगाने के लिए उनकी प्रतिबद्धता हम सब को हैरान कर देती है। करीब चार साल पहले उन्होंने पेड़ लगाने की मुहिम शुरू की। उन्होंने तय किया कि हर रोज एक पेड़ जरूर लगाएगें। उन्होंने इस मुहिम का कठोर व्रत की तरह पालन किया। वो 1500 से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि इस साल एक हादसे का शिकार होने के बाद भी वे अपने संकल्प से डिगे नहीं। मैं ऐसे सभी प्रयासों की हृदय से सराहना करता हूं।

पीएम मोदी ने कहा कि हमारे आस-पास कुछ लोग ऐसे होते हैं जो आपदा में धैर्य नहीं खोते, बल्कि उससे सीखते हैं। ऐसी ही एक महिला है सुबाश्री, जिन्होंने अपने प्रयास से दुर्लभ और बहुत उपयोगी जड़ी-बूटियों का एक अद्भुत बगीचा तैयार किया है। वो तमिलनाडु के मदुरै की रहने वाली हैं। वैसे तो पेशे से वो एक टीचर हैं, लेकिन औषधीय वनस्पतियों, Medical Herbs के प्रति इन्हें गहरा लगाव है। उनका ये लगाव 80 के दशक में तब शुरू हुआ, जब एक बार उनके पिता को जहरीले सांप ने काट लिया। तब पारंपरिक जड़ी-बूटियों ने उनके पिता की सेहत सुधारने में काफी मदद की थी। इस घटना के बाद उन्होंने पारंपरिक औषधियों और जड़ी-बूटियों की खोज शुरू की। आज मदुरई के वेरिचियुर गांव में उनका अनोखा Herbal Garden है, जिसमें, 500 से ज्यादा दुर्लभ औषधीय पौधे हैं।

उन्होंने कहा कि आपके प्रतिभा और रचनात्मकता को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार का सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने ‘क्रिएटिव इन इंडिया’ इस थीम के तहत 25 चुनौतियां शुरू की हैं। ये चुनौतियां आपको जरूर दिलचस्प लगेंगे । कुछ चुनौतियां तो संगीत, शिक्षा और यहां तक कि एंटी-पायरेसी पर भी हैं। इस आयोजन में कई सारे व्यावसायिक संगठन भी शामिल हैं, जो इन चुनौतियों Challenges को अपना पूरा समर्थन दे रहे हैं। इनमें शामिल होने के लिए आप wavesindia.org पर लॉगिन कर सकते हैं। देश-भर के क्रिएटर्स से मेरा विशेष आग्रह है कि वे इसमें जरूर हिस्सा लें और अपनी क्रिएटिवटी को सामने लाएं।

उन्होंने कहा कि इस महीने एक और महत्वपूर्ण अभियान के 10 साल पूरे हुए हैं। इस अभियान की सफलता में देश के बड़े उद्योगों से लेकर छोटे दुकानदारों तक का योगदान शामिल है । मैं बात कर रहा हूं ‘मेक इन इंडिया’ की। आज मुझे ये देखकर बहुत खुशी मिलती है कि गरीब, मध्यम वर्ग और MSMEs को इस अभियान से बहुत फायदा मिल रहा है। आज भारत मैन्युफैक्चरिंग का पावरहाउस बना है और देश की युवा-शक्ति की वजह से दुनिया-भर की नजरें हम पर हैं। ऑटोमोबाइल हो, कपड़ा हो, एविएशन हो, इलेक्ट्रॉनिक्स हो या फिर डिफेंस, हर सेक्टर में देश का निर्यात लगातार बढ़ रहा है।

पीएम मोदी ने कहा कि देश में FDI का लगातार बढ़ना भी हमारे ‘मेक इन इंडिया’ की सफलता की गाथा कह रहा है। अब हम मुख्य रूप से दो चीजों पर focus कर रहे हैं। पहली है ‘गुणवत्ता’ यानि हमारे देश में बनी चीजें वैश्विक मानक की हों। दूसरी है ‘वोकल फॉर लोकल’ यानि स्थानीय चीजों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा मिले ।

उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के भंडारा जिले में कपड़े की एक पुरानी परंपरा है- ‘भंडारा टसर सिल्क हैंडलूम।’ टसर सिल्क अपने डिजाइन, रंग और मजबूती के लिए जानी जाती है। भंडारा के कुछ हिस्सों में 50 से भी अधिक ‘सेल्फ हेल्प ग्रुप’, इसे संरक्षित करने के काम में जुटे हैं। इनमें महिलाओं की बहुत बड़ी भागीदारी है।

पीएम मोदी ने कहा कि त्योहारों के इस मौसम में आप फिर से अपना पुराना संकल्प भी जरूर दोहराइए । कुछ भी खरीदेंगे, वो ‘मेड इन इंडिया’ ही होना चाहिए। कुछ भी उपहार देंगे, वो भी ‘मेड इन इंडिया’ ही होना चाहिए। सिर्फ मिट्टी के दीये खरीदना ही ‘वोकल फॉर लोकल’ नहीं है। आपको अपने क्षेत्र में बने स्थानीय उत्पादों को ज्यादा-से-ज्यादा प्रमोट करना चाहिए। ऐसा कोई भी उत्पाद, जिसे बनाने में भारत के किसी कारीगर का पसीना लगा है, जो भारत की मिट्टी में बना है, वो हमारा गर्व है – हमें इसी गौरव पर हमेशा चार चांद लगाने हैं।

इस कार्यक्रम की शुरुआत तीन अक्तूबर 2014 को हुई थी। इसे 22 भारतीय भाषाओं और 29 बोलियों के अलावा 11 विदेशी भाषाओं में भी प्रसारित किया जाता है, जिसमें फ्रेंच, चीनी, इंडोनेशियाई, तिब्बती, बर्मी, बलूची, अरबी, पश्तू, फारसी, दारी और स्वाहिली शामिल हैं। ‘मन की बात’ कार्यक्रम का प्रसारण आकाशवाणी के 500 से अधिक केंद्रों द्वारा किया जाता है।